मधुशाला [शाम-ए-जाम]

वो काव्य सरस मधुषाला थीयह भाव सरस मधुषाला हैवह हरि जी की मधुषाला थीयह सर्व सरल मधुषाला है।। पूजा–पाठ की ओज न खोजेजिधर भी खुल जायेमधुकर पहॅंुचें सूंघ-सूंघ करकर लाखों जतन उपाय समरूप सम वृहद भूमि समदेख समन्वय मधुषाला कीपृश्ठ भूमि कम फिर भी हरदमलगी भीड़ है मधुषाला की।। सूझ न आती मुझे कभी येइसमें …
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समझ गया मैं

प्रस्तुत कविता दर्षा रही है कि हम कुछ बहुत बड़ा करने की चाहत में छोटे संभावित आधारों को नजर अंदाज़ करते जाते हैं, जिसका परिणाम होता है कि उस बड़ा पाने के कयास में एक बहुत बड़ा और कीमती समय न जाने कब हमारे हाथ से निकल जाता है। बीत रहे हर पल को पकड़ोसमयचक्र जो …
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कर्मयोग

प्रस्तुत कविता जीवन में आने वाली असहजताओं से जूझने और चुनौनियों का सामना करने की प्रेरणा दे रही है।जीवन एक संघर्षशील मार्ग है जिसमें यदा-कदा हार और निराशा का भी सामना करना पड़ता है।चुनौतियों से हार न मानते हुये कर्मठता के साथ अंत तक प्रयासशील रहना चाहिये। कर्मभूमि की कर्मशाला मेंकिये प्रयोग घनेरेकुछ खोया कुछ …
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हम बड़ी तेज हईं {भोजपूरी व्यंग्य}

प्रस्तुत ‘भोजपूरी’ व्यंग्य–काव्य रचना हमारे दिखावेपन के परिवेश तथा नवयुवा वर्ग में बढ़ रही उग्र तथा उत्तेजक मानसिकता को दर्शा रही है। बस सूखल गुमान बाकि हम बड़ी तेज हईंबाबा के गॉंवेएगो टूटही मचान बाकि हम बड़ी तेज हईं भंसल पलानी आ ढहल दलानी केखपरइली मड़ई में छितराइल मुजवानी केओरियान छवात नईखे अइसन गुमानी केतबो …
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