प्रस्तुत ‘भोजपूरी’ व्यंग्य–काव्य रचना हमारे दिखावेपन के परिवेश तथा नवयुवा वर्ग में बढ़ रही उग्र तथा उत्तेजक मानसिकता को दर्शा रही है।
बस सूखल गुमान बा
कि हम बड़ी तेज हईं
बाबा के गॉंवे
एगो टूटही मचान बा
कि हम बड़ी तेज हईं
भंसल पलानी आ ढहल दलानी के
खपरइली मड़ई में छितराइल मुजवानी के
ओरियान छवात नईखे अइसन गुमानी के
तबो सूखल गुमान बा कि हम बड़ी तेज हईं
कईलऽ का बबुआ तु तेजई के मारे
कुछु मांगे के बोलब
त लगबऽ चियारे
हो जईबऽ किनारे
आ लगबऽ विचारे
कि हम बड़ी तेज हईं
छौंड़ा छाप के देखीला तनिके में बहके के
भचऽ-भचऽ बोले के जल्दी से लहके के
मनवा डेराला कि होखे मत खेला हो
भागीं मूंड़े गोड़ धरी लागे जनी मेला हो
काहें कि
सूखल गुमान बा कि हम बड़ी तेज हईं
एगो बात के अकड़ बा मन में
पर कौना बात के अकड़ बा मन में
उ बतिया अकड़ वाली धरात नईखे
मन परऽता लेकिन पकड़ात नईखे
काहें कि
बस सूखले गुमान बा कि हम बड़ी तेज हईं
बाबा के गॉंवे
एगो टूटही मचान बा
कि हम बड़ी तेज हईं
X~X~X
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