वो भोर की खौफनाक दौड़ (भाग: 3)

भाग: 3 {संदिग्ध वृद्ध से संवाद} कहानी का रोमांचक पड़ाव

जैसा कि बहुत सारे क्षेत्रों में प्रायः अपनी-अपनी क्षेत्रिय भाशा का चलन रहता है जिसमें प्रातः कोई भी मिलता है तो उसे लोग अपने-अपने लहज़े में गुड-माॅरनिंग या दुआ-सलाम करते हैं उसी प्रकार यहाॅं भी लोग राम-राम बोल कर संबोधित करते थे, चाहे वो किसी भी धर्म का ही क्यों न हो आपसी भाइ-चारे में प्रातः सब एक दूसरे को राम-राम कहते थे।
अब मैं जैसे ही पेड़ के नजदीक पहुॅंचा तो मैने देखा कि इस पेड़ के तने की ओट के नीचे एक व्यक्ति बिल्कुल सफेद वस्त्र पहने गंगा की तरफ मुॅंह कर के बैठा है। तो मुझे लगा कि वो कोई वृद्ध आदमी है जो ध्यान साधना में बैठा है। अब वहाॅं से गुजरने के दौरान मैने उस आदमी से बोला–
बाबा-ः राम-राम, एक बार फिर बोला, राम-राम बाबा, ऐसा दो बार बोलते हुए मैं आगे निकल गया लेकिन उस आदमी का कोई जवाब नहीं मिला, क्योंकि मुझे लगा कि षायद ये ध्यान साधना में बैठा है इसलिये जवाब नहीं दिया लेकिन सुना जरूर है। खैर मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और मैं यथावत आगे बढ़ चला, लेकिन अभी मेरे पीछे मूॅंगा भी रहा था और उसे इस बात का काफी काफी फर्क पड़ा क्योंकि उसने मुझे रामराम बोलते सुन लिया था और ये भी ध्यान दिया था कि बाबा ने इसका कोई जवाब नहीं दिया था, तो अब क्या था उसे भिड़ने के लिये एक नया मौका मिल गया जिसकी वो हमेषा खोज में लगा रहता।

दौड़ते-दौड़ते वो भी पेड़ के नजदीक आया और वहाॅं रूक गया

ध्यान दीजिएगा अब कहानी का रोमांचक मोड़ यहाॅं से षुरू हो रहा है।
(संवाद)
मूॅंगा बाबा से-ः बाबा राम-राम लेकिन बाबा पूर्ववत एकदम चुप, कोई जवाब नहीं। लेकिन ये भी साला पक्का ढीठ। इसने बाबा से थोड़ी ऊॅंची आवाज में फिर कहा बाबा राम-राम, लेकिन फिर भी बाबा की तरफ से कोई जवाब नहीं।
मैं कुछ दूर पर खड़ा होकर उसका ये तमाषा देख रहा था। और मुझे आगामी स्थिती को भांपते देर न लगी कि ये साला भोर-भोर के समय पंगा लेने के चक्कर में लग गया है।
मैं थोड़ा सा उनके पास की तरफ बढ़ा और बोला
(संवाद)
मै-ः अबे साले मूंगे बाबा को गोली मार और निकल यहाॅं से देर हो रही है। वो राम-राम नहीं बोल रहा क्योंकि वो ध्यान साधना में बैठा होगा। तु उसे फालतु ही उंगली कर के डिस्टर्ब कर रहा है। साले तेरी गाॅं… में क्या तकलीफ हो रही है, चल निकल यहाॅं से चूतिये।
लेकिन ये तो बज्र ढीठ था। मेरी एक न सुनी और वहीं अड़ गया। और मुझसे बोला- यार तु ठहर जा जरा, मैं इस बाबे की राम-राम के बगेैर यहाॅं से नहीं जाने वाला।
(संवाद)
मूॅंगा-ः इसने बाबा से और ऊॅंची आवाज और तीखे स्वर में कहा, साले डुक्कर (क्षेत्रिय भाशा में वृद्ध आदमी) इतनी देर से और इतनी तेज से तुझे राम-राम बोल रहा हूॅं तुझे सुनाई ना दे रई (क्षेत्रिय भाशा)। साले डुकरे एक हाथ में निपट लेगा दुनिया से। राम-राम बोल साले जब तक नहीं बोलेगा तब तक यहाॅं से हिलुॅंगा नहीं। और तो और साले तुझे कूट के जाऊॅंगा।
मैं इधर लेट होने के चलते परेषान हो रहा था। और मैने उसी दूरी से मूॅंगे से फिर बोला
(संवाद)
अबे चल भों….ड़ी के, बाबा को तुने क्या तुझसे राम-राम बोलने का ठेका दिलवाया है। गाॅंडू मैं इसकी जगह राम-राम बोल देता हूॅं और अब निकल ले यहाॅं से। (मजाकिया लहजे में) साले बाबा को क्रोध आ गया तो तुझे भस्म कर देगा यहीं पर वो तो अच्छा है कि साला गुॅंगा बहरा है नहीं ंतो अब तक तो तु भस्म हो गया होता साले। अब चल यहाॅं से।

लेकिन ये साला मेरी कहाॅं सुनने वाला था?
अब उसनेे बाबा की तरफ एक-दो कदम और बढ़ाये।
लेकिन तभी अचानक से अबकी बार उस पेड़ की ओट से एक बड़ी गम्भीर और भर्रायी हुई सी आवाज आई- लड़ेगा मेरे से?
वो आवाज बहुत तेज तो नहीं थी, लेकिन सुनसान और षांत माहौल की वजह से एकदम स्पश्ट सुनाई दी। उस बाबा की आवाज बड़ी गंभीर ओर डरावनी सी थी, साथ ही उसकी भर्रायी और काॅंपती आवाज से मैने महसूस किया कि वो अज्ञात आदमी कोई अस्सी से पच्चासी वर्श की आयु का वृद्ध होगा।

मैं अब तक इन दोनों के विवाद स्थल से कुछ दूर पर था लेकिन वो आवाज सुनी तो मैं सकते में आ गया और मैं उनके कुछ और पास तक गया। और मैं उस आदमी को देखने का प्रयास करने लगा।
लेकिन उस पेड़ का तना लगभग छः से आठ फिट व्यास का था जो कि काफी मोटा था और ऊपर से उस पेड़ की घनी डालियाॅं थीं, तो नीचे लगभग काफी अंधेरा था और कुछ भी स्पश्ट दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन रोड लाईट से हल्का-फुल्का आभासी नजर आ रहा था, पर रोड लाईट की दूरी दोनों ही तरफ से लगभग 50 मी0 के करीब थी। सो स्पश्टता कम ही थी।
उस बाबा की ये बात सुनकर मूॅंगा हॅंसने लगा, और मुझसे बोला-
(संवाद)
मूॅंगा-ः (हास्यास्पद भाव में) पंडत जे देख लियो भाई, ये डुकरा मेरे से लड़ेगा, साले डुक्कर की कहानी लगता है पूरी हो गई दिखे धरती पे।
मैं-ः (मूॅंगा से, हास्यास्पद भाव में) ओये यार ये डुकरा तो बड़ा ही ढीठ है, हद हो गई, साला राम-राम नहीं बोल सकता लेकिन साला लड़ने-मरने को तैयार बैठा है. मैंः- ओये मरेगा क्या डुकरे सवेरे-सवेरे?
साले ओये बाबेे, इस उमर में हड्डियाॅं टूटने के बाद जुड़ती नहीं हैं। डुकरे हगना भारी हो जायेगा तेरा। लड़ेगा इससे???
फिर हमदोनो हॅंसे।
लेकिन अचानक से फिर वही भयावह, गम्भीर और भर्रायी हुई सी आवाज उसी पेड़ की ओट से आई-
लड़ेगा मेरे से?
इस बार मैं थोड़ा सख्त हो गया, मैने बाबा से बोला
ओये बाबा, होष में तो है तु? ज्यादा चरबी चढ़ गई है क्या तुझे?
लेकिन उस बाबा ने जैसे कुछ सुना ही नहीं था और उसने फिर बोला — तु भी लड़ेगा मेरे से?
ये सुनकर मैं उन दोनों के थोड़ा और करीब हुआ और संभावित अखाड़ा क्षेत्र से करीब सात फिट की दूरी पर आ कर खड़ा हो गया।
इस बार मैने भी उग्र स्वर में जवाब दिया। ओयेे बाबे, पहले तु मेरे दोस्त से बच जाये तो फिर मेरे से भी लड़ लियो।

और मैने मूॅंगा को ललकारा, ओये गैंडे- दे साले डुकरे को घुमा के दो धोबी पछाड़, और ऐसा दियो जो ये साला पहली बार में ही चारों खाने चित्त हो जाये।
मूॅंगा को भी जोष आ गया। उसने बाबा को ललकारा। ओये आजा बाबे तेरी चर्बी उतारूॅं मैं।
ये सुनकर बाबा का भी षरीर हरकत में आया और बाबा अब उस ओट से उठ कर खड़ा हो गया।
लेकिन उसके बाद जो हमने देखा वो अपनी आॅंखों से पचने और विश्वास करने लायक बिल्कुल नहीं था।
उस वृक्ष के धुंधले अंधेरे में जब बाबा खड़ा हुआ तो मैने उसको गौर से देखने का प्रयास किया, लेकिन बाबा का चेहरा नहीं देख पा रहा था, पर जो सबसे चौंका देने वाली बात मैं देख रहा था वो थी उस बाबा की लंबाई।
उस बाबा के षरीर की लंबाई करीब साढ़े छः से साढ़े सात फिट की होगी, जो की एकदम सफेद वस्त्र में लिपटा हुआ था। देखने में एकदम दुबला-पतला सा लग रहा था।
बाबा की लंबाई देखकर मैं कुछ सिहर गया और मैने मूॅंगा की तरफ देखा।
मूॅंगा भी उस बाबा को एक टक देखता रहा और उसने मुझसे बोला-
(संवाद)
मूॅंगा-ः ओये पंडत ये बाबा तो ताड़ का पेड़ है बे, (हास्यास्पद भाव में) इस साले से तो सिढ़ी लगा के लड़ना पडे़गा।

क्रमशः (भागः 4 में पढ़िये) वो भोर की खौफनाक दौड़ (भाग: 4) – LekhVani.com

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