भाग: 4 [संदिग्ध वृद्ध से विवाद] कहानी का मुख्य पड़ाव
मैं बोलाः- हाॅं बे यार, ये तो खंबे जैसा दिख रहा है, न हिल रहा है, न ही बोल रहा है, ये डुकरा तो एकदम ताड़ की झाड़ लग रहा है।
तु तो ये बता तेरा क्या हाल है?
और मैं मूॅंगा के मनः भाव का आभास करने लगा और मैने महसूस किया कि मूॅंगा पर तो लड़ने का जुनुन सवार है और वो एकदम निर्भिक और बेधड़क खड़ा है, और उसने जवाब दिया-
मूॅंगाः कुछ नहीं पंडत, बस तु देखता जइयो मैं कैसे इसे धूल चटाता हूॅं।
और वो बाबा एकदम षांत स्वभाव में वैसे का वैसे ही जड़ खंबे जैसा खड़ा था।
पर मैं हकीकत में कुछ घबरा रहा था और मैने मूॅंगा से एकबार फिर
मैने बोला- देख बे गैंडे अगर तेरे को कुछ अजीब लग रहा हो तो अब भी वक्त है भाग ले यहाॅं से।
तभी बाबा अपनी गम्भीर और भर्रायी हुई आवाज में बोला
अब लड़ मेरे से- बिना लड़े तु यहाॅं से अब नहीं जा सकता।
इतना सुनना था कि मूॅंगाः एकदम ताव में आ गया, उसने धरती का स्पर्ष किया, धूल हंथेलियों पर मल कर दोनों पंजे दंगल दाॅंव में आगे बढ़ाये, लेकिन बाबा ने अब जो किया वो मेरे लिये आठवें अजूबे से कम न था।
बाबा ने अपना हाथ आगे जरूर बढ़ाया लेकिन उसने हाथ आगे बढ़ा कर पंजा नहीं मिलाया, उसने हाथ आगे बढ़ाने के साथ ही मूॅंगा की गर्दन और लंगोट पकड़ी और देखते ही देखते मूॅंगा को बच्चे की तरह अपने कंधे से भी ऊपर ऊठा लिया जैसे उसने किसी पेड़ की दरख्त टाॅंग ली हो, और मैं कुछ बोल पाता उसके पहले उस बाबा ने मूॅंगा को बास्केट बाॅल की तरह नीचे पटक दिया।
मूॅंगा के मुॅंह से एकदम दबी आवाज में कराह निकल पाई। वो चिल्ला नहीं पाया।
मैं एकदम से आगे की तरफ लपका, लेकिन मूॅंगा के हिम्मत तारीफ करनी होगी वो अब भी उसी अवस्था में कराहते हुए बोला, रूक जा पंडत, ये माध…..द बाबा का कुछ ज्यादा दाॅंव-पेच जानता है, इस भों…. वाले बाबा को अभी बताता हूॅं मैं।
लकिन वो बाबा अब भी एकदम षांत स्वभाव में वैसे का वैसे ही जड़ खड़ा का खड़ा था और उसने फिर अपनी उसी गम्भीर और भर्रायी हुई आवाज में बोला-
उठ और लड़ मेरे से-
लेकिन मैं जो देख और समझ पा रहा था वहाॅं स्थिती अब लड़ने लायक नहीं थी और उसमें मूॅंगा को अब खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था।
लेकिन उस खंबे जैसी आकृती वाले आदमी के उकसाने पर वो फिर से लड़खड़ाता हुआ हिम्मत के साथ खड़ा हो गया, इस बार उसने थोड़ा झुककर अपने पंजे आगे बढ़ाये, लेकिन ये क्या
उस बाबा ने उसे फिर वैसे ही अपने कंधे से ऊपर ऊठा लिया और देखते ही देखते फिर से गेंद की तरह पटक दिया।
इस बार मूॅंगा के मुॅंह से कोई आवाज भी नहीं निकल पाई और उसका षरीर भी बिलकुल षीथील सा पड़ गया। उसके षरीर में कोई हरकत नहीं हो पा रही थी।
मैं डर के मारे एकदम घबरा गया। अब मैं आगे बढ़ने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा था।
मुझे लगा इस आदमी ने मूॅंगा को खत्म कर दिया। मैने उतनी ही दूरी से अपने घबराये हुये स्वर में पूछा-
मूॅंगा भाई तु ठीक है न, लेकिन उधर से कोई भी जवाब नहीं आया।
मैं घबराहट के साथ अब दबी आवाज में रोने लगा। और मैने रोते हुये उससे दुबारा पूछा- भाई मूॅंगा तु ठीक तो है न, लेकिन उधर से न तो कोई जवाब आया और न ही उसके षरीर में कोई हरकत दिखी।
मैं इतना डर गया था कि गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी।
मेरे मन में विचार आया कि मेरी अब यहाॅं से भागने में ही भलाई हैं, नहीं तो मैं भी बेमौत मारा जाऊॅंगा। ये सोच कर मैं कुछ कदम पीछे हट गया।
लेकिन अगले ही पल मैने सोचा कि अपने दोस्त को ऐसी हालत में छोड़ के भागना कायरता होगी। लोगों के सामने क्या बताऊॅंगा। लोग मुझे डरपोक और कायर समझेंगे।
मैं यदि इसके घर गया तो क्या जवाब दूॅंगा कि मैं डर के कारण भाग आया?
ऐसा सोचते ही मैने अपने भय को नियंत्रित किया।
मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि उधर से उस बाबा की भयानक सी आवाज आई-
आजा लड़के तु भी लड़ने वाला था मेरे से।
मैं घबराया हुआ रो रहा था इसलिये मैने उस बाबा की बात का कोई जवाब नहीं दिया।
क्रमशः (भागः 5 में पढ़िये) वो भोर की खौफनाक दौड़ [भाग: 5] – LekhVani.com
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