वो भोर की खौफनाक दौड़ (भाग: 5)

भाग: 5 [अति भयभीत स्थिती और भागने का प्रयास]

अब तक मैं जिस बात को नज़र अंदाज़ कर रहा था वो बात मुझे अचानक से ध्यान आई, और वो बात थी समय।
ये ध्यान में आते ही मैने चारों तरफ नजर दौड़ाई कि कहीं कोई आदमी दिखे, लेकिन दूर तक भी किसी की आहट महसूस नहीं हो रही थी।
मैं विस्मित था। मुझे महसूस हुआ कि षायद आज हम दोनों समय से काफी पहले आ गये हैं। ये सोचते ही मेरा दिमाग सन्न हो गया और मेरा ध्यान कलाई पर बंधी मेरी घड़ी पर गया। मैने अपनी जेब से लाइटर निकाला और जला कर समय देखा, और समय देखकर मैं एकदम स्तब्ध हो गया।

ये क्या मेरी घड़ी अब भी पाॅंच बज कर बीस मिनट के करीब का ही समय दिखा रही थी। समय देख कर मेरा डर और घबराहट और बढ़ गया, होष गायब होने लगा। अब मुझे समय का कुछ ध्यान आया और एक मुख्य बात याद आई कि मेरी घड़ी कल षाम से ही बंद पड़ी है, जिसका मुझे बिल्कुल भी ध्यान नहीं था, और इसका मतलब ये था कि मैं अपने घर से साढ़े बारह या पौने एक बजे के लगभग निकल चुका था।
मैं आज भी दो चीजें लाइटर और छोटा चाकू हमेषा अपने साथ ले कर चलता हूॅं, जबकि दोनों में से कोई भी चीज मेरेे बहुत कम ही इस्तेमाल में आती हैं, फिर भी ये दो चीजें मैं साथ रखता हूॅं।

मैं अपना लाइटर लिये हुये कुछ आगे की तरफ झुका और मैने उस आदमी का चेहरा देखने का प्रयास किया, लेकिन मैं उसका चेहरा देख पाता इसके पहले ही वो अज्ञात बूढ़ा आदमी लाइटर की रोषनी देखते ही पेड़ के तने के ओट की तरफ तेजी में कुछ पीछे हटा, मैं उसका चेहरा तो नहीें देख सका, लेकिन तभी पीछे हटते हुये मुझे उसका पैर दिखाई दिया और पैर देखते ही मेरे होष फाख्ता हो गये।
मैने देखा कि उसके दोनों पैर उसके षरीर से एकदम उल्टे थे।
मुझे अब ये समझते देर नहीं लगी कि ये अज्ञात आदमी जैसा दिखने वाला व्यक्ति इंसान तो नहीं है, लेकिन मैं ये नहीं समझ पाया कि आखिर वो है कौन।
मैं उसकी तरफ आगे बढ़ने का प्रयास करने लगा
लेकिन तभी उसने बड़ी क्रोधित आवाज में कहा- लड़के रोषनी दूर करो नही ंतो मैं तुम्हे भी खत्म कर दूॅंगा।
उसकी बात सुनकर मैं एकदम सकते में आ गया, और अपने बढ़ते कदम रोक दिये। मैं अब उस बाबा की बात का जवाब नहीं दे पा रहा था।
मैने लाइटर भी बंद कर दिया। लेकिन अब दोस्त कोे वहाॅं से निकालना था और मैने फिर से हिम्मत जुटाते हुये लाइटर को पुनः जलाया और मूॅंगा के पास तक धीरे-धीरे बढ़ने लगा।
लेकिन वो संदिग्ध वृद्ध फिर से बोला- लड़के रोषनी बंद कर दे नही ंतो ठीक नहीं होगा। मैं बहुत ज्यादा डरा हुआ जरूर था, लेकिन अब मैने उसकी बात अनसुनी करते हुये लाइटर जलाये ही रखा और आगे बढ़ता गया।
लगभग सात मीटर चलकर उसके पास पहुॅंचने में करीब 5 मिनट लग गये। अब मैं मूॅंगा के पास पहुॅंच कर इसका चेहरा देखा, इसका चेहरा सुर्ख पड़ा था, षरीर में कोई हरकत नहीं थी, मुझे कुछ अनहोनी का आभास जैसा प्रतित हो रहा था। फिर मैने उसके सीने की धड़कन सुनी और हाथ की नब्ज़ देखी, अब मुझे कुछ सुकून सा महसूस हुआ, जिस डर का मुझे अंदेसा हो रहा था वैसा नहीं था। वो अभी जीवित था। मैं जोष से भर गया। मेरा डर जाने लगा।

उधर वो आदमी अति क्रोधित आवाज में रोषनी बंद करने के लिये बराबर बोल रहा था, लेकिन मुझे ये अहसास हो गया था कि वो संदिग्ध वृद्ध रोषनी से डर रहा है, इसलिये वो मेरे करीब नहीं आ रहा।

अब तक लाइटर जलते जलते मेरे अंगुठे और हॅंथेली को गला रहा था, लेकिन मौत के सामने हाथ जलने का अहसास नहीं था।
मैने एक हाथ में जलती लाइटर पकड़े हुए ही मॅंूगा को उठाने की कोषिष की, लेकिन उसका षरीर काफी भारी था, जिसे मैं आसानी से हीला पाने में भी असमर्थ था। साथ ही मैं पूर्ण प्रयासरत भी था।
लेकिन तभी पीछे से फिर से आवाज आई-
इसे छोड़ दे, रौषनी बंद कर के भाग जा यहाॅं से नहीं तो तेरा भी यही हाल करूॅंगा।
उस अज्ञात पिसाच जैसे आदमी की ये बात सुनकर मेरी आत्मा फिर से सिहर गई, लेकिन मैं अपनी मौत को निष्चित मानते हुये ही आगे बढ़ा था, क्योंकि अब दोस्त को छोड़ कर भागना मेरे लिये असंभव था और मैने हिम्मत नहीं हारी, मैं अपने दोस्त को छोड़ कर बिल्कुल नहीं जा सकता था और न ही मैने लाइटर बंद किया। मैं उसी तरह लाइटर और हथेली जलते हुए मूॅंगा को उठाकर उसे घसीटते हुये आगे बढ़ने लगा।

पेड़ की ओट से वो फिर चिल्लाया इसे छोड़ दे, रौषनी बंद कर और भाग जा, लेकिन अब न तो मैं पीछे देख रहा था न ही डर रहा था इसलिये उसकी आवाज को अनसुना कर मूॅंगा को घसीटता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, और मैं जितना आगे बढ़ रहा था मेरे अंदर आत्मविष्वास भी बढ़ता जा रहा था और डर दिमाग से निकलता जा रहा था।
मैं समझ चुका था कि उस पिसाच के पास में जब मैं जलता लाइटर लेकर था तब वो कुछ नहीं कर पाया तो अब वो कुछ नहीं कर सकता था, और अब मैं पेड़ की छाव से बाहर होने तक लगातार बढ़ता चला गया।
अब जब मैं पेड़ की छाव के अंतिम छोर पर था तो मुझे लगा कोई मेरे पीछे आ रहा है, लेकिन मैने लाईटर से देखा तो कोई आकृती पास आकर दूर भागती हुई सी दिखाई दी। उसने पेड़ के पास से अंतीम बार वही षब्द दोहराये-
इसे छोड़ दे लड़के, इसे छोड़ कर चला जा यहाॅं से। लेकिन मैं अब पेड़ की छाव से बाहर आ चुका था।

क्रमशः (भागः 6 में पढ़िये) वो भोर की खौफनाक दौड़ [भाग: 5] – LekhVani.com

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