वो भोर की खौफनाक दौड़ (भाग: 6)

भाग: 6 [लोग एकत्रित, मूंगा का इलाज]

आगे बद़ते बद़ते हम अब रोड लाईट के नीचे आ चुके थे, अब हम उस पेड़ और उस मौत के मंज़र से करीब सत्तर मीटर की दूरी पर थे, और अब जा के मैने राहत की साॅंस ली। अब यहाॅं पहुॅंच कर मैंने उसे लेटा दिया और इस रोड लाईट की रोषनी के नीचे मैने मॅंूगा के पूरे षरीर को ध्यान से देखा कि षरीर का कोई अंग तो अलग नहीं हो गया है, मैने पाया कि षरीर पूरा ठीक था लेकिन मॅंूगा को घसीटते हुये लाने की कारण उसका पैर खून से लथपथ हो चुका था।

अब सबसे पहले मूॅंगा को होष में लाना जरूरी था सो मैं पानी की तलाष में लग गया। मुझे कहीं नल नजर नहीं आया लेकिन पास ही एक गड्ढे में पानी दिखा। मैने अपना रूमाल निकालर उसे भिगो लिया और बड़ी स्फूर्ती से दौड़ता हुआ मूॅंगा के पास जाकर उसके चेहरे पर पानी डाला और उसे थोड़ा हिलाया लेकिन अब भी मॅंूगा को होष नहीं आया, ये देख मैं मेरी साॅंसे रूकने लगी। मैं घबरा कर फिर से रोने लगा। मैने एक बार फिर से प्रयास किया और मैने उसकी छाती दबाकर मूॅंह से साॅंस दिया और दुबारा उसके मूॅंह पर पानी डाला। इस बार मेरा ये प्रयास सफल रहा। अबकी मूॅंगा के षरीर में हरकत हुई, वो होष में आ गया, लेकिन वो जरा भी हिल पाने में पूर्ण असक्षम था।
उसने मेरी ओर ध्यान से देखा और कराहती हुई आवाज में बोला मैं कहाॅं हूॅं और तुम कौन हो? मैं उसका चेहरा विस्मित भाव से देखने लगा और मैं समझ गया कि सिर पर गहरी चोट लगने के कारण षायद इसको कुछ याद नहीं आ रहा है।
अब इसके होष में आते ही मुझे हिम्मत आ गई और मैने जोर-जोर से मदद के लिये आवाज लगाई।
हमारे स्थान से करीब आधे, पौन की0मी0 की दूरी पर कुछ छोटी दुकानें थीं जिनमें लोग सो रहे थे। मेरी आवाज सुनते ही वे लोग बाहर निकले और मेरी आवाज का अनुसरण कर दौड़ते हुए सात-आठ आदमी मेरे पास आ गए। पास आते ही उन लोगों ने घबराहट से पूछा क्या हुआ? लेकिन मैने कुछ भी बताने से पहले उनसे समय पूछा, ऐसा पूछने पर वो हमें घूर के देखने लगे। उन्होंने बताया कि अभी लगभग पौने तीन बज रहे हैं।
फिर मैने अपने साथ बीती घटना को बड़े संक्षिप्त में बताते हुये उस पेड़ की तरफ इषारा किया।
वो टाॅर्च लेकर मेरे साथ उस पेड़ की तरफ दौड़े। साथ में कुछ दूर तक मैं भी गया लेकिन मैं इतना भयभीत हो गया था कि पेड़ के पास तक जाने की मेरी अब हिम्मत नहीं हुई। उन लोगों ने मुझे हिम्मत दिलाते हुए आस्वस्त करने का भी प्रयास किया, लेकिन फिर भी मैं उन के साथ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। मुझे छोड़ के वो उस घने पेड़ के पास गये, वहाॅं जाकर उन्होंने उस आदमी को आवाज लगाई, और पेड़ के चारों तरफ, ऊपर-नीचे हर जगह खोजा लेकिन वहाॅं कोई नहीं मिला। फिर उन लोगों ने वहाॅं जमीन पर देखा, उन लोगों ने पाया कि वहाॅं कुछ सफेद बाल गिरे हैं। मिट्टी हल्की गीली होने के कारण पैरों के काफी निषान भी मिले। और वहाॅं से पैर घसीटने के भी निषान मिले।
वो वहाॅं से वापस लौट कर आये। फिर उन लोगों ने मॅंूगा को ध्यान से देखा, और उसे पहचान लिया। उन्होंने बोला अरे ये तो मूंगा भैया हैं!! फिर मॅंूगा से बोले- अरे भैया हमें पहचान नहीं रहे क्या?
मैने उन्हे बताया कि ये अभी मुझे भी नहीं पहचान रहा, इसके सिर में गहरी चोट लगी है, इसलिये षायद ये किसी को भी पहचान नहीं पा रहा है।
वे लोग मूॅंगा से बोले हम तुम्हें अभी अस्पताल ले चलते हैं। तुम चिंता मत करो। तुम एकदम ठीक हो जाओगे।

इतनी रात किसी वाहन की व्यवस्था करने में समय लगता चुॅंकि उस समय मोबाइल की सुविधा नहीं थी, और मोटरसाइकिल पर बैठने लायक उसकी स्थिती नहीं थी, सो वे आनन फानन में खाट जुगाड़ कर के लाए और उसे खाट पर लेटा कर तुरंत पास के अस्पताल ले कर दौड़े। रास्ते में जाने के क्रम उनलोगों ने मुझसे पूरी घटना सुनी।
अगले कुछ दिनों तक ये घटना उस क्षेत्र में चर्चा का विशय भी बनी रही।
अस्पताल पहुॅंचने पर उस वक्त डाॅक्टर मौजूद नहीं थे, एक कम्पाउण्डर था, वो हमारे पास आया, उसने मूॅंगा को ध्यान से देखा और बोला, अरे ये तो मूॅंगा भैया हैं, क्या हो गया इन्हें? वो भी मूॅंगा से परिचित था। लेकिन मूॅंगा किसी को भी पहचान नहीं पा रहा था।
मैने बताया कि सवेरे-सवेरे कुष्ती में ये एक बहुत बड़े पहलवान से भिड़ गया, इसलिये इसको काफी चोट लगी है। उसने बोला कि डाॅक्टर तो अभी जल्द नहीं आ पायेंगे, लेकिन मैं प्रयास कर रहा हूॅं। उसने पहले मूॅंगा को दर्द का इंजेक्षन दिया फिर डाॅक्टर को फोन किया।

उसके बाद डाॅक्टर करीब एक-सवा घंटे बाद आये, और अब तक भोर के सवा पाॅंच बज रहे थे। डाॅक्टर कुछ उम्रदाज थे और अच्छे अनुभवी भी लग रहे थे। उन्होने मूॅंगा को ध्यान से देखा और काफी देर तक चेक किया। फिर अपने अनुभव के आधार पर बताया कि इनकी रीढ़ की हड्डी और छाती की पसलियों में काफी चोट लगी है, और कहा कि हमारे पास उपकरण उपलब्ध नहीं हैं और पूरे षरीर का एक्स-रे तथा सी.टी. स्कैन बहुत जरूरी है इसलिये उन्होंने क्षेत्र के एक बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया।

अब तक मूॅंगा के घर के लोग भी अस्पताल आ चुके थे। हम तुरंत उसे लेकर दूसरे बड़े अस्पताल पहुॅंचे। वहाॅं हमने सारे स्कैन और एक्सरे करवाये फिर वहाॅं मौजूद डाॅक्टर ने पुश्टि कर के बताया कि सिर में अंदरूनी काफी चोट लगी है, जिसकी वजह से ये फिलहाल कुछ याद नहीं कर पा रहा है, लेकिन ये जल्द ही ठीक हो जायेगा साथ ही ये भी कहा कि इसकी रीढ़ की हड्डी और छाती की पसलियों में भी काफी चोट आई है जिसकी वजह से वो हिल नहीं पा रहा था और इसे ठीक होने में काफी समय लगेगा और डाॅक्टर ने उसे छः माह बेड रेस्ट की सलाह दे डाली और इलाज षुरू किया।

इन सब कार्य से निवृत होने के बाद मैं उस दिन करीब 12 बजे दोपहर को घर पहुॅंच पाया। इधर घर पर सब मुझे बहुत तबियत से खोज रहे थे। घर आने के बाद भी ये घटना मैने अपने घर पर किसी को कभी नहीं बताई, क्योंकि पिताजी की सख्त हिदायत थी कि मैं काॅलोनी से बाहर किसी भी काम के लिये बिना उनके परमीषन के नहीं जाऊॅं। उस दिन षाम को पिताजी के आॅफिस से लौटने के बाद मेरी बहुत तबियत से खातिरदारी हुई।
लेकिन फिर भी हम कहाॅं मानने वाले थे। अगले दिन से पिताजी के आॅफिस जाते ही मैं अपने दोस्त मूॅंगा से एक बार मिलने जरूर जाता। अब धीरे-धीरे मूॅंगा के षरीर में सुधार हो रहा था।

क्रमशः (भागः 7 में पढ़िये) वोभोर की खौफनाक दौड़ [अंतिम भाग: 7] – LekhVani.com

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