वो भोर की खौफनाक दौड़, अंतिम (भाग: 7)

भाग: 7 [अंत भला तो सब भला]

करीब दस दिन इलाज के बाद वो धीरे-धीरे सबको पहचानने भी लगा, और करीब एक माह तक वो अस्पताल में ही रहा। एक माह बाद उसे अस्पताल से छोड़ा गया। घर आने के बाद भी वह लगभग तीन माह तक बिस्तर पर ही पड़ा रहा। तीन माह बाद वो कुछ हल्का चलने के लायक हो सका।
लेकिन उसका षरीर अब पहले जैसा नहीं रह सका। डाॅक्टर ने उसे कुष्ती, पहलवानी या कोइ्र्र भी भारी काम करने से साफ मना कर दिया था। उसको पूर्ण स्वस्थ होने में करीब तीन साल लगे और अब उसने अपना पसंदीदा खेल कुष्ती भी छोड़ दिया था। और साथ में उसने दूसरों के विवाद में अकारण और जबरन बोलना तो बिल्कुल ही छोड़ दिया था।
अब मैं भी काॅलोनी से बाहर दौड़ने या कसरत के लिये नहीं जाता था, मैं दौड़ अपने घर के पास मैदान में पूरी कर लेता था और अपनी वर्जिष घर पर ही षुरू कर दी।
हालांकि मेरा दोस्त मूॅंगा आज मुझसे काफी दूर है, चुॅंकि पिताजी के तबादले के कई सालों बाद बाद उसको मैने फेसबुक के जरिये खोजा। मैं उसके बाद एक बार नरौरा भी गया। अब उसकी षादी हो चुकि है, दो बच्चे है और वो एक खुषहाल पारिवारिक जीवन व्यतीत कर रहा है।

अनुरोध
मैं इस घटना के माध्यम से इस घटना को पढ़ने वाले अपने सभी पाठक मित्रों से यही अनुरोध करूॅंगा कि एकदम सूनसान जगहों पर जाने से बचे विषेश तौर पर रात में और यदि किसी कारण वष आपको ऐसे रास्तांे का सामना करना भी पड़े और यदि आपके रास्ते में कोई अनभिज्ञ और अज्ञात मिले तो उससे बात करने या उसे छेड़ने का प्रयास न करें, आप सीधे अपने रास्ते चलते जायें, साथ ही किसी के बीच में स्वयं हस्तक्षेप करने का भी प्रयास न करंेें। इस अनुरोध के साथ ही ‘‘भोर की खौफनाक दौड़’’ अब समाप्त होती है.