कोरोना के दूसरे चरण ने भी वर्ष 2021 में जमकर तांडव मचाया है। गत वर्ष से लेकर अब तक कोरोना काल में अच्छे-अच्छे पहलवान जैसे और पढ़े लिखे लोग भी कोरोना की वजह से भयभीत और मानसिक भयाक्रंात हैं। इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना एक वायरल बिमारी है। जो कि महामारी नहीं है जिसको WHO ने महामारी घोषित कर रखा है, नहीं तो हर जगह लाशों की ढेरियाॅं लगी होतीं और न तो कोई गिनने वाला बचा होता न ही आॅंसू बहाने वाला। हर शहर, गाॅंव, गली मोहल्ले शमशान बन गये होते।
इसमें भी कोई शक नहीं कि लोग कोरोना से मर रहे हैं, लेकिन क्या कोई भी माध्यम हमको ये बता सकता है कि कितने लोग वास्तव मे केवल कोरोना से मरे और कितने लोग केरोना के डर से???
इसी डर पर आधारित है यह प्रस्तुत लघु कथा… इसलिये इस लेख को पूरा पढ़ें, जरूर पढ़ें और दूसरों को पढ़़ायें…
एक गाॅंव में एक सिद्ध सन्यासी रहता था जो गाॅंव में आने वाली हर प्रकार की विपत्तियों से गाॅंव वालों को बचाता था। इस वजह से गाॅव वाले उसका बहुत सम्मान और आदर करते थे। एक दिन सन्यासी अपनी कुटिया के बाहर ध्यान साधना में विलीन बैठा था, तभी उसे अहसास हुआ कि कोई चुपके से गाॅंव में प्रवेष कर रहा है। उसने तुरंत अपनी आॅंख खोली और पाया कि एक काली परछाई दबे पाॅंव गाॅंव में घुसने का प्रयास कर रही है। सन्यासी ने उसे डाॅंटते हुये रोका और पूछा- सन्यासी: तु कौन है और बिना मेरी अनुमति के इस गाॅंव में क्यों प्रवेष कर रही है? काली परछाई: हे तपस्वी मैं मौत हूॅं, और मुझे काल ने भेजा है इस गाॅंव से एक हजार लोगों को अपने साथ ले जाने के लिये। सन्यासी: ठीक है यदि काल ने भेजा है तो तुम्हे रोकना अनुचित होगा, लेकिन ध्यान रहे तुम अपना काम समाप्त करते ही ये स्थान छोड़ दोगी अन्यथा मैं तुम्हे यहीं भस्म कर दूॅंगा।
अब अनुमति पा कर काली परछाई रूपी मौत उस गाॅंव में प्रवेष कर गई और अपना काम प्रारम्भ कर दिया। देखते ही देखते तीन से चार दिन में मौत अपना काम समाप्त कर के जाने को तैयार हुई लेकिन तभी उसने पाया कि उसे अभी और रूकने की जरूरत है। उसका काम बढ़ गया। सप्ताह का अंत होते होते मौत के पास अब 15 से बीस हजार लोग मौजूद हो गये। मौत ने पाया कि यहाॅं भरपूर रोजगार है तो दो-तीन दिन और रूक जाये। इन दो तिन दिनों में मौत के पास दस हजार का आॅंकड़ा और बढ़ गया। अब मौत काफी खुषी से वहाॅं से निकलने लगी। लेकिन जैसे ही वो सन्यासी के आश्रम के पास से गाॅंव से बाहर निकलने लगा उस सन्यासी ने गंभीर क्रोधित आवाज में मौत को रोका- सन्यासी: रे दुश्ट! बिना मेरी अनुमति के तूने बाहर जाने का दुस्साहस कैसे किया? और ये मैं क्या देख रहा हूॅं। तु तो मुझसे एक हजार मृत्यु बोल कर गई थी, लेकिन तु तो तीस गुना जीवन लिये जा रही है। तुने मुझसे इंसानों की तरह झूठ बोला। मैं तुझे अभी भस्म किये देता हूॅं। काली परछाई: हाथ जोड़ कर! हे तपस्वी! मैने आपसे इंसानों की तरह कोई झूठ नहीें बोला। मैं तो केवल एक हजार जीवन ही लेने गई थी, लेकिन बाकी के 29,000 लोगों ने अपने डर से मुझे प्राण दान दे दिये। अब आप ही बताइये कि इसमें मेरा क्या दोश है???
दोस्तों इस कहानी के माध्यम से मैं अपने सभी पाठकों से यही आग्रह कर रहा हूॅं कि कोरोना रूपी बिमारी से केवल हमें सतर्क और सचेत रहने की जरूरत है, डरने की तो एकदम जरूरत नहीं है। विषेश ध्यान देने वाली बात ये है कि कोरोना हमारे पास किसी भी साधारण बिमारी– जैसे– सर्दी, जुकाम, खाॅंसी, बुखार, जैसी मामूली बिमारी के किसी भी रूप में आ सकता है, और हम ऐसे में लापरवाही ये करते हैं कि इन प्रकार की बिमारियों को मामूली समझ के नजरअदाज करते हैं । इसलिये हमें केवल सचेत रहते हुये ऐसे लक्षण पाये जाने पर तुरंत से इलाज प्रारंभ करने की जरूरत है। प्रारंभिक चरण के बिना गंभीर स्थिती वाले मरीेज अपना इलाज स्वयं अपने घर पर ही करें। होम्योपैथी और आयुर्वेद में इसका बहुत सस्ता और पूर्ण इलाज है। जो कि मेडिकल माफिया आम जनता तक ये बात पहुॅंचने ही नहीं देते। इसलिये एकदम निडर और निर्भिक रहें। संतुलित आहार पर विषेश ध्यान दें। कसरत करें। पूर्ण नींद लें।कोरोना का बाप भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।
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