वो काव्य सरस मधुषाला थी
यह भाव सरस मधुषाला है
वह हरि जी की मधुषाला थी
यह सर्व सरल मधुषाला है।।
पूजा–पाठ की ओज न खोजे
जिधर भी खुल जाये
मधुकर पहॅंुचें सूंघ-सूंघ कर
कर लाखों जतन उपाय
समरूप सम वृहद भूमि सम
देख समन्वय मधुषाला की
पृश्ठ भूमि कम फिर भी हरदम
लगी भीड़ है मधुषाला की।।
सूझ न आती मुझे कभी ये
इसमें आखिर जाये कौन
संताप मन उन्हें भी जल्दी
फिर भी मौज करे यौवन।।
वो काव्य सरस मधुषाला थी
यह भाव सरस मधुषाला है।
मन विचलित मन मंथन करता
सोमरस का पान करें
जा कर क्षुधा मिटे इस मन की
मधुषाला गुणगान करें।।
मधु पर मधु जब बन कर चढ़ता
संताप मिट जाता है
पर कहते मधुषाला प्रेमी
मजा इधर ही आता है।।
वो काव्य सरस मधुषाला थी
यह भाव सरस मधुषाला है।
मधुषाला की बात करें और
सोमरस का पान न हो
मधुषाला भी देगी गाली
जिसके हाथ में जाम न हो।।
मधुषाला के बिना भी ये जग
मधुमय होना चाहे
लेकिन देखे दिषा-दषा तो
मन क्षुभ्ध हो जाये।।
वो काव्य सरस मधुषाला थी
यह भाव सरस मधुषाला है।
हरि जी के षब्द चलें
और हरि भजन का नाम न हो
पर मधुषाला षब्द कहें कि
इससे रंगीन कोई षाम न हो।।
मधु में मधुमय होकर मधुकर
कहते फिर जग वालों से
षाम ढले तो मधुषाला हो
बिन मधुषाला षाम न हो।।
वो काव्य सरस मधुषाला थी
यह भाव सरस मधुषाला है।
देख मधुरता मधुषाला की
लोग अचंभा खाते हैं
कि अनजाने और अनदेखे भी
जाम साथ लड़ाते हैं।।
वाह रे मधुषाला बोल
कैसे तेरा गुणगान करें
लाख थपेड़े खाते फिर भी
मधुकर तेरा सम्मान करंे।।
वो काव्य सरस मधुषाला थी
यह भाव सरस मधुषाला है
वह हरि जी की मधुषाला थी
यह सर्व सरल मधुषाला है।।
X~ मधुशाला ~X
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