ये एकदम सही कहा गया है कि ‘‘जा को राखे साॅंईयाॅं, मार सके ना कोई’’ जिसकी सार्थकता का अनुभव हमने स्वयं लाॅकडाउन की यात्रा के दौरान किया। लाॅकडाउन की वजह से भारत के अनेकों प्रांतों में लोग जहाॅं के तहाॅं फॅंसे हुये थे, जिनको लाॅकडाउन 3.0 के विस्तार के दौरान सरकार द्वारा कुछ नियम व षर्तों के साथ घर जाने की अनुमती दी गई। इसी आधार पर मुझे भी राजस्थान से बिहार आने की अनुमती प्राप्त हुई।लेकिन रास्ते में हमारे साथ एक अनहोनी होते-होते रह गई नहीं तो आज षायद ये बताने के लिये हम जीवित ही नहीं होते।
इस कहानी की षुरूवात कुछ इस प्रकार हुई हमने अपनी यात्रा 3/5/2020 को प्रातः 3 बजे जिला चित्तौड़ के राश्ट्रीय राजमार्ग से प्रारंभ की। करीब तीन घंटे लगातार चलने के बाद हम कोटा पहुॅंच गये और रास्ते में ताजा होने के लिये एक जगह हमने अपनी गाड़ी रोकी, लेकिन उसके बाद गाड़ी स्वतः चालू नहीं हुई, काफी प्रयासों के बाद ये महसूस हुआ कि गाड़ी का ‘सेल्फ स्टार्टर’ काम नहीं कर रहा है। फिर जैसे तैसे धक्का देने पर गाड़ी चालू हुई और हमने अपनी यात्रा पुनः प्रारम्भ कर दी। अब हमारे पास गाड़ी को लेकर एक बड़ी समस्या खड़ी थी जिसके समाधान में केवल दो ही विकल्प थे, या तो 1300 की.मी. के पूरे रास्ते भर गाड़ी कहीं बंद ना करें या जल्द से जल्द किसी मिस्त्री से इसका इलाज करवायें चुंकि हमें अभी बहुत लम्बी यात्रा करनी थी तो ये सम्भव नहीं था कि हम गाड़ी कहीं बन्द ना करें इसलिये हमने रास्ते में मिस्त्री की तलाष षुरू की जो कि उस परिस्थीती में अति आवष्यक था। लेकिन हमारे साथ खोटा संयोग भी यात्रा कर रहा था। एक तो लाॅकडाउन का माहौल था और दूसरे रविवार का दिन जिसमें कई जगह मिस्त्री की दुकानें बंद मिलीं। फिर भी हमने रास्ते में कई जगह मिस्त्री की तलाष करते हुये अपनी यात्रा प्रारंभ रखी। दिन ढलता जा रहा था, संभावनायें कम दिख रही थीं। अब षाम के 6 बज चुके थे और चलते-चलते हम म.प्र. षिवपूरी जिला के करेरा में पहुॅंचे। वहाॅं पहुॅंच कर हमने चालू हालत में गाड़ी खड़ी की और पास खड़े कुछ लोगों से मिस्त्री के बारे में पूछा। उनलोगों ने बताया कि आज रविवार है इसलिये मिस्त्री मिलना थोड़ा कठिन है, तभी उनके सामने दो लड़के एक दुकान बंद कर के जा ही रहे थे तो वहाॅं मौजूद लोगों उन लड़कों की तरफ इषारा करते हुये बताया कि ये लोग ‘सेल्फ स्टार्टर’ के ही मिस्त्री हैं आप उनसे एक बार पूछ लीजिये, षायद आपका काम हो जाये। चूंकि हमारे साथ समस्या जटिल थी इसलिये हमने मिस्त्री से सहायता के लिये पूछ लिया। इन लड़कों ने कहा कि आज दुकान बंद है इसलिये यहाॅं तो कोई काम नहीं हो सकता और इस काम का मिस्त्री भी घर पर ही है, आपको यदि जरूरी हो तो हमारे साथ घर चलिये वहीं पर आपकी गाड़ी का काम हो पायेगा। घर जाने की बात पर मैने उनकी दुकान तथा उनको ध्यान से देखा वे मुस्लिम थे, मन में कुछ संषय हुआ लेकिन हमारी समस्या गंभीर थी सो साथ जाने का निर्णय लेते हुये हमने पूछा कि आपका घर कितनी दूर है? वो बोले कि बस पाॅंच मिनट का रास्ता है, आप हमारी मोटर साईकिल के पीछे चलते आईये।
अब वे आगे चल रहे थे और हम षंकित मन से उनका अनुसरण करते हुये चलने लगे। कुछ दूर चलने पर बस्ती आ गई और रास्ता कुछ संकरा होने लगा और षंका बढ़ने लगी। कुछ और आगे चलने के बाद बस्ती और घनी होती गई और रास्ता और भी संकरा होता गया और हमारी षंका तथा घबराहट ज्यादा बढ़ने लगी। करीब 12 मिनट चलने के बाद वे हमें एकदम संकरी गली में ले कर चले आयेे जहाॅं से पीछे जा पाना अब बहुत ही कठिन था। हमने चारों तरफ नजर दौड़ाई, और हमने पाया कि हम स्पष्ट रूप से एक घनी मुस्लिम आबादी वाले इलाके में पहुॅंच चुके हैं। और अब हम समझ चुके थे कि हम षायद एक संभावित जाल में फंस चुके हैं, जहाॅं किसी को मदद के लिये बोलना व्यर्थ ही था। मन में घबराहट और विवषता की भयावह स्थिती बन चुकी थी और इसी घबराहट में हमारी गाड़ी भी बंद हो गई। लेकिन हम लगभग उनके दरवाजे पर पहुॅंच चुके थे। फिर वे गाड़ी को धक्का देकर अपने दरवाजे पर ले गये और गाड़ी खड़ी कर दी।हम बहुत अधिक सहम चुके थे, लेकिन अब हम कुछ नहीं कर सकते थे, क्योंकि अब सारी स्थिती उनके हाथ में थी, सो हम गाड़ी से बाहर निकले और स्थ्रि भाव से पूछा क्या आप इसका ‘सेल्फ स्टार्टर’ ठीक कर पायेंगे? उन्होंने हमें आष्वस्त करते हुये कहा कि आप एकदम निष्चिन्त रहिये, आप एकदम सही जगह पर पहुॅंच चुके हैं। हम आपकी गाड़ी आपको चालू कर के देंगे। ये सुनकर हमें थोड़ी राहत महसूस हुई।
षाम की किरण अब अंधियारे में डूब रही थी। मुझे ज्ञात था कि ‘सेल्फ स्टार्टर’ ठीक करने का काम काफी समय लेने वाला जटिल काम है, इसलिये मैं षांत भाव से उनकी गतिविधि देख रहा था। इसके बाद उन लोगों ने गाड़ी में काम चालू किया, करीब एक घंटे मषक्कत करने के बाद सभी आवष्यक पूर्जे खुल चुके थे। फिर उनमें से एक मिस्त्री ने ‘सेल्फ स्टार्टर’ को खोलकर गौर से देखते हुये बताया कि इसमें एक पूर्जा जल गया है जो कि दुकान से मंगवाना पड़ेगा। इस समय करीब 7 बज चुके थे जब वे लड़के अपनी मोटरसाईकिल ले कर दुकान निकले।उनकी दुकान जाने की बात ने हमें और आषंकित कर दिया था। हमें लगा कि षायद वो कुछ और लोगों को एकत्रित करने गये हैं। लेकिन वे दुकान से करीब 20 मिनट बाद गाड़ी का पुर्जा लेकर लौटे। समय 7ः30 हो चला था। इधर मौसम भी काफी महरबान था। उन्होंने जैसे ही पुनः काम चालू किया, तभी जोरदार आॅंधी और तूफान भी चालू हो गया। लगभग डेढ़ घंटे आॅंधी और बारिष होने के बाद मौसम खुला और अब समय करीब रात्री का 9 बज चुका था।इस बीच उनलोगों ने हमें भोजन करने और रात्री विश्राम के लिये भी आग्रह किया, लेकिन हमारी हालत भय और आषंका से ग्रस्त हो गई थी। हमने उनसे आग्रह किया कि आप कृपया हमारी गाड़ी ठीक कर दीजिये, हमें अभी बहुत दूर जाना है, इसलिये हमारा निकलना जरूरी है।
बारीष रूकने के बाद उनलोगों ने ‘सेल्फ स्टार्टर’ बिल्कुल ठीक कर दिया और पुनः गाड़ी के पूर्जों को सूव्यवस्थित करने में जूट गये।करीब डेढ़ घंटे की मेहनत के बात उनलोगों ने गाड़ी चालू कर दिया, और अब समय करीब रात्री का 10ः15 बज चुका था। लेकिन अब हमारी कार ठीक हो चुकी थी, इसलिये हमारे मन का भय और घबराहट कुछ कम होने लगा। हमने उनके काम के पैसे दिये और चलने की आज्ञा मांगी। उन्होने कहा ठीक है, हमारा एक लड़का आपको रास्ता दिखाने के लिये आपके आगे मोटरसाईकिल से जायेगा, और आपको हाईवे तक छोड़ आयेगा। आप उसके पीछे-पीछे चले जाईयेगा।हमने गाड़ी चालू की और वहाॅं से निकलने में लग गये। अब हमारा डर कुछ-कुछ और कम हो रहा था।
अब इस यात्रा का घटनाक्रम यहाॅं मोड़़ लेने वाला था!!! हमने देखा कि मोटरसाईकिल पर एक लड़के की जगह एक कार में चार से पाॅंच लड़के सवार हो गये। हमारा डर फिर से पहले से दुगना हो गया, और ये देखते हुये हमने कहा कि भाईसाहब आपलोग क्यों कश्ट कर रहे हैं, आप घर पर ही रहिये हम चले जायेंगे। उन लोगों ने आग्रह भाव में जवाब देते हुये कहा कि इसमें कश्ट की कोई बात नहीं है, आप हमारे मेहमान हैं, और आपको रास्ता नहीं मालुम है, इसलिये हमारा चलना जरूरी है। वे नहीं माने और वे लोग अपनी गाड़ी हमारे आगे लेकर चलने लगे। काफी बारीष हो जाने के चलते सभी रास्ते पानी से भर गये थे और रास्ते का आंकलन कर पाना कठिन हो रहा था। वे हमारे आगे चलने लगे, और हम डरे हुये उनके पीछे चल रहे थे। संकरी गलियों से निकलते हुये वे हमें एक रास्ते में ले गये, लेकिन रास्ते में तत्काल आई हुई आॅंधी के चलते पेड़ गिर गये थे। उनलोगों ने कार बैक करने के लिये कहा। हमने अपनी कार बैक की। वे फिर से हमारे आगे हो लिये, और एक दूसरे रास्ते में लेकर जाने लगे, लेकिन षायद हमारी किस्मत अच्छी थी कि उस रास्ते में भी पेड़ गिरा हुआ था, और पानी भी भरा हुआ था। उनलोगों ने हमें फिर से कार बैक करने कोे कहा, लेकिन संयोग से उस मोहल्ले के दंपत्ती वहाॅं अपने घर के द्वार पर खड़े थे और षायद हिंदू थे क्योंकि महिला ने सिंदूर लगा रखा था। हमने उनसे हाईवे जाने का रास्ता पूछा। उनलोगों ने दूसरी तरफ हाथ का इषारा करते हुये कहा कि हाईवे का रास्ता तो उधर की तरफ से जाता है जो पाॅंच मिनट का भी नहीं है, और ये रास्ता जहाॅं ये लोग ले जा रहे हैं, ये दूर सूनसान नदी घाटी वाले खेतों में जाता है। इतना सुनना था कि हमारे पैर के नीचे से जमीन खिसक गई, धड़कन बहुत तेज हो गई, क्योंकि इस चक्रव्यूह का जाल हमारी संभावित मौत की तरफ इषारा कर रहा था। मैं हिम्मत हारने लगा था, हाथ में गाड़ी का स्टीयरिंग पकड़े़ अपने सामने खड़ी मौत को अवाक् सा देख रहा था। मेरी जीभ सूखने लगी। गले से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी। बगल सीट पर बैठे भाई ने मेरे डर को स्पष्ट देखा और मुझे झकझोरते हुये बोला- भैया क्या हो गया??? उसके झकझोरने से मैं एकदम से ऐसे जागा जैसे अभी-अभी बेहोशी से उठा हूॅंू। मैने बोला- अब हमारी मौत सुनिश्चित हो गई है। मेरी घबराहट देखकर भाई ने एक ही बात बोली- ‘‘भैया ये बहुत मुश्किल घड़ी है, और यदि आप ही हिम्मत हार जायेंगे तो हमारा मरना एकदम तय है।
उसकी ये बात सुनकर मेरे दिमाग में जैसे बिजली सी कौंध गई। मेरे अंदर एकदम से जोश भर गया और मैने कहा एकदम सही बोल रहे हो– “WE WILL FIGHT TILL THE END” यहाॅं तक कि मैं उनसे अब लड़ने तक का विचार बना चुका था,। मुझे कुछ ज्यादा सूझ नहीं रहा था। तभी भाई ने कहा- आपके हाथ में गाड़ी है और सामने रास्ता है, तो अभी भागना ज्यादा समझदारी का काम होगा। अब मैने गाड़ी की स्टीयरिंग सम्भाली, और भाई को मोबाइल पर ‘गुगल मैप’ चालू करने के लिये कहा। फिर उसने जैसे ही ‘गुगल मैप’ चालू किया, हाईवे का रास्ता साफ दिखने लगा। मैने तुरंत कार घुमाई और उनलोगों से बोला कि आपलोग घर लौट जाईये, अब हम चले जायेंगे। इस वक्त उनकी कार हमसे करीब 50 मीटर की दूरी पर थी। उनलोगों ने बात का अनदेखा कर दिया और बोले कि जिस दिषा में हमारी कार का मुख है वो गलत दिषा है। हमने फिर कहा, कोई बात नहीं आपलोग लौट जाओ, हम चले जायेंगे। लेकिन उन लोगों का वही जवाब था हम आपको छोड़ कर ही आयेंगे। इधर भाई ने मुझे आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया और मैने कार आगे बढ़ा दी, लेकिन जैसे ही हम आगे बढ़े रास्ता पूरा पानी से भरा हुआ था, और अनजान रास्ता होने की वजह से बड़े गड्ढे में गाड़ी फंसने की आषंका बन गई। इधर उनलागों ने भी अपनी कार हमारे पीछे लगा दी।। इधर पानी भरे रास्ते की आषंका से मैं रूका हुआ था, लेकिन साथ बैठे भाई ने फिर से जोर देकर मुझसे कहा कि अब जो होगा सो होगा आप कार मत रोको। मैने फिर से हिम्मत जुटाई और गाड़ी को पहले गियर में डाल कर फुल स्पीड दिया, एक गड्ढे की आवाज के साथ हम उस जलमग्न रास्ते से बाहर निकल गये।कुछ और आगे जाने पर वैसा ही जलमग्न रास्ता आ गया, लेकिन मैने गाड़ी धीरे नहीं की। भाई ‘गुगल मैप’ देखकर रास्ता बताता जा रहा था, और मैं बिना रूके लगातार गाड़ी भगाता जा रहा था। सारी बाधाओं को पार करते हुये, करीब 5 मिनट चलने के बाद हाईवे सामने दिखने लगा, लेकिन अंतिम चरण पर एक और बाधा खड़ी थी। एक पेड़ जो आॅंधी की वजह से आधा टूट के लटका हुआ था, फिर मैने महसूस किया कि हमारी कार इसमें से निकल तो जायेगी, लेकिन पेड़ की टहनी कार की छत को क्षतिग्रस्त कर सकती है। लेकिन पीछे से आ रही संभावित मौत के आगे मैने फिर से कार को फुल स्पीड दिया और उस पेड़ से आगे निकल गये।
अब हम हाईवे पर आ चुके थे, और वे लोग भी हमारे पीछे लगे हुये थे। लेकिन अब डर कुछ हद तक जा चुका था। मैने कार की चाल बढ़ा दी और भाई ने पुलिस कंट्रोल रूम में संपर्क का प्रयास किया। काफी प्रयासों के बाद फोन लगा, और उधर से जल्द ही मदद मिलने की बात बोल कर आष्वसत किया। लेकिन आधे घंटे तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। लेकिन अब हमलोग तेज गती से चलते हुये उस क्षेत्र से करीब 20 की.मी. आगे निकल चुके थे, लेकिन पीछा करने का डर अब भी हमारे दिमाग में बैठा हुआ था, इसलिये मैने रास्ते में तैनात हाईवे पुलिस के पास जाकर गाड़ी रोकी, और उनको सारी घटित घटना का संक्षेप में विवरण दिया।मैने उनका नाम पूछा, उनमें एक इंस्पेक्टर षर्मा थे, फिर अपना भी नाम बताया, इंस्पेक्टर षर्मा ने हमें पूर्ण आष्वस्त करते हुये कहा कि अब आप 5. मिनट में उ.प्र सीमा में प्रवेष करने वाले हैं, जहाॅं पूरे हाईवे के चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात है, और इसलिये आप पूर्ण निडर होकर रातभर चल सकते हैं। किसी की मजाल नहीं कि रास्ते में आपको कोई कुछ करेगा।अब यहाॅं से हमने पूर्ण निष्चिन्त और निर्भिक होकर अपनी यात्रा प्रारंभ की।
इस भयावह यात्रा वृतांत के उन कर्ताऔं का नाम इस लेख में उजागर नहीं कर रहा हॅंू, क्योंकि संभवतः उनकी मनसा हमारे प्रति सहायक भी हो, लेकिन षुरू में उनके मिलने से लेकर अंत तक उनकी हर गतिविधी हमारे दिमाग में भय, आषंका और दुविधा जनक क्रिया बना रही थी। इस पूरी व्यथा की कथा में क्या कोई बता सकता है कि उन लोगों की मनसा हमारे प्रति क्या हो सकती थी??? जाहिर तौर पर उन लोगों ने हमारी मदद भी की थी, लेकिन इसके पीछे उनकी क्या सोच और मनसा थी??? इसलिये यथा-संभव लंबा रास्ता अकेले बिल्कुल भी न चलें, चलते समय बहुत सारी सावधानियों को ध्यान में रखकर यात्रा करें, नहीं ंतो ये जरूरी नहीं कि हमारी तरह आपकी किस्मत भी आप पर या आपके परिवार पर महरबान हो।
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