
भारत के महानतम विभुतियों में से एक अपने महान महात्मा गांधी, एक नायक व्यक्ति जिन्होंने तथाकथित अहिंसा अभियान के माध्यम से अपने देश को ब्रिटिश साम्राज्यों के चंगुल से मुक्त कराया, जो कुछ लोगों के लिए लगभग संत माना जाता है बल्कि अपने कालांतर में नेषनल पापा (राष्ट्र पिता) के नाम से भी संबोधित हुआ।
आइये, यहां 2 अक्टूबर, 1869 को जन्मे मोहनदास कर्मचंद गांधी का संक्षिप्त परिचय समझते चलें कि उसका बचपन काफी आरामदायक माहौल में बड़ा हुआ। उसके पिता पोरबंदर के भारतीय राज्य में मुख्यमंत्री के पद पर थे। कहा जाता है कि उसकी मां एक पवित्र महिला थीं, यहीं से युवा गांधी को जीवन में साधारण चीजों को संजोने के लाभ-हानि का पता चला। अपनी माँ द्वारा देखी गई धार्मिक भक्ति से उसमें नैतिकता की भावना पैदा हुई जिसके लिए वह बाद में वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध हुआ।
जब वो अध्ययन के लिए लंदन जाने लगा तो भारत छोड़ने से पहले उसने अपनी माँ से आधुनिक जीवन के प्रलोभनों में न पड़ने, स्त्री और मांस से दूर रहने और आम तौर पर उन आदर्शों को बनाए रखने की शपथ ली जो उसे उसकी मॉं द्वारा सिखाई गई थीं। लेकिन लंदन में कानून की पढ़ाई के दौरान उन्होंने 19वीं सदी के उत्तरार्ध का उद्योग और उसके साथ आने वाली सभी भयावहताएँ देखीं। कई लंदनवासी अपने मैले-कुचौले कपड़ों और गंदे चेहरों के साथ ब्रिटेन की औद्योगिक संपदा से परे थे। गांधी ने गरीबी तो देखी, लेकिन उसनेे वहां की सक्रियता भी देखी। ऐसा ही तब हुआ जब वह दक्षिण अफ्रीका गया, जहां उसनेे अधिकांश आबादी को अत्यंत गरीबी में जीवनयापन करते देखा। गांधी इस समय तक एक शिक्षित वकील हो चुका था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसे उच्च ब्रिटिष नागरिक की तरह सभी फुटपाथों पर चलने या सभी इमारतों में प्रवेश करने की अनुमति मिल गई थी।
इस कहानी में और भी बहुत कुछ है, लेकिन आइए पहले हम आपको अच्छे गॉंधी की अच्छी कहानी बताते हैं।
गॉंधी जो खुद को उतना ही अंग्रेज मानता था जितना कि वह भारतीय था लेकिन यूरोपीय लोग उसके साथ दोयम दर्जे का ही व्यवहार करते थे। एक बार उसे उसकी नस्ल के कारण ट्रेन के डिब्बे से बाहर धकेल कर निकाल दिया गया था। भारतीय नस्ल और रंग के कारण कई अन्य लोगों की तरह उससे उसके अधिकार छीन लिए गए थे। एक अन्य अवसर पर, एक श्वेत यात्री के लिए जगह न बनाने के कारण उसकी पिटाई की गई। इसके अलावा उसे कुछ होटलों में ठहरने से रोका गया, भले ही उसके पास भुगतान के लिए पैसे थे। अब कहानी यह है कि गांधी साम्राज्यवादियों द्वारा की गई कई गलतियों को समझता था और इसलिए अब उसने अपने जीवन का एक अहम फैसला लिया कि वह इस भेद-भाव की प्रक्रिया में बदलाव लाने के लिये प्रयासरत होगा। लेकिन उसका प्रतिरोध, उसकी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप, शांतिपूर्ण होना था। सबसे बेहतर उसकी क्रांति की शुरुआत अवज्ञा के एक कार्य से होती है और इस तरह उसनेे अधिकारों के लिए लड़ना शुरू किया जिससे उसे एक कर्मषील कार्यकर्ता के रूप में अपना नाम मिला। इसका नतीजा ये रहा कि दक्षिण अफ्रीका के डरबन में वर्ण भेद विरोध पर गुस्साए गोरे लोगों की भीड़ ने गॉंधी को पीट-पीट कर अधमरा कर डाला।
गॉंधी ने दक्षिण अफ्रीका में कई साल बिताए, लेकिन उन्हें पता था कि भारत को भी उसकी जरूरत है।
भारत लौटने पर गांधी ने लोगों के अधिकारों के लिए अहिंसात्मक लड़ाई षुरू की। इस दौरान उसपर अंग्रेजों द्वारा कई अत्याचार भी हुये। उसे पीटा गया, जेल में बंद किया प्रताड़ित कर उत्पीड़न किया गया लेकिन फिर भी उसने शांति का ही प्रचार किया। उसने भले ही ब्रिटिश युद्ध प्रयासों का समर्थन किया हो, लेकिन वे ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की आलोचना करने से भी कभी नहीं कतराता था।
इन अहिंसात्मक और सामाजिक गतिवीधियों ने गांधी को भारत के राजनैतिक महकमें में एक शक्तिशाली नाम और चेहरा बना दिया। उसके राष्ट्रवाद के इस स्वरूप को भारत देश के अधिकांश लोगों ने वास्तव में अपनाया, और उन्हें ये लगने लगा कि गॉंधी की इस अहिंसात्म इच्छाशक्ति के जरिये भारत अंग्रेजों से मुक्त हो सकता है।
गॉंधी की बढ़ती सक्रिय लोकप्रियता के कारण उसे 10 मार्च, 1922 को गिरफ्तार कर लिया गया और अगले दो साल तक सलाखों के पीछे रखा। उन्होंने ब्रिटिश शासन के कई पहलुओं के खिलाफ शांतिपूर्वक विद्रोह करने के लिए कई भारतीय लोगों का नेतृत्व किया। गॉंधी के कई अनुयायी सविनय अवज्ञा आंदोलनों के कारण कई बार जेल गए। 1932 में जेल में रहते हुए, गॉंधी ने भारत की निचली जाति व्यवस्था के बेदखल होने पर एक प्रसिद्ध उपवास किया, जिन्हें अछूत कहा जाता था। गॉंधी को इन लोगों ने एक आषा के साथ सर-ऑंखों पर बैठा लिया जब इन लोगों ने देखा कि गांधी अपने सबसे गरीब लोगों के अधिकारों के लिए मरने को तैयार हैं।
इसके साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस स्वशासन का अपना एक सूगठित रूप चाहती थी।
फिर द्वितीय विश्व युद्ध षुरू हुआ और फिर से भारतीयों को अंग्रेजों के लिए लड़ने की उम्मीद बनी लेकिन यदि भारतीय नागरिकों को युद्ध के मैदान में झोंका जाता, तो उनमें से 90 प्रतिषत के करीब अंततः मारे जाते, फिर भी इस युद्ध में शायद ढाई मिलियन कुल भारतीय हताहत हुये थे जिनका उल्लेख अब तक कभी-कहीं नहीं किया गया है। लेकिन युद्ध समाप्त होने से पहले 8 अगस्त 1942 को गॉंधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू कर दिया था, और 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से आजादी मिल ही गई।
तो आपने अभी जो यहॉं पढ़ा वह एक ऐसे व्यक्ति की संक्षिप्त कहानी है जिसने दुनिया में क्रूरता और अनुचितता के खिलाफ एक दूसरे ही रूप में आवाज उठाई।
लेकिन गांधी अपनी इस अहिंसा नीति को अपरिमित मूर्खतापूर्ण स्तर पर ले जा रहा था और आश्चर्य की बात तो ये है कि जब जर्मन नाज़ी इंग्लैंड पर हमला और बमबारी कर रहे थे, तो गांधी ने ये कहा था कि ‘मैं चाहता हूं कि आप मानवता को बचाने के लिए अपने पास मौजूद हथियारों को बेकार मानकर छोड़ दें’ और ‘ब्रितानियों को जवाबी लड़ाई में परेशान नहीं करें’, ‘यदि वे सज्जन आपके घरों पर कब्जा करना चुनते हैं, तो आप गॉंधी विचारधारा के तहत उन्हें प्रेम से खाली कर दें, यदि वे आपको स्वतंत्र रूप से बाहर जाने की अनुमति नहीं देते हैं, तो आप अपने आप को परिवार की महिला व बच्चों समेत समर्पित कर दें, लेकिन आप उनके प्रति निष्ठा रखने से इनकार नहीं करें।
गॉंधी के इस प्रकार की बेतुकि सोच के कारण ही तत्कालिन सरकारों ने गांधी के निर्देशों का पालन नहीं किया और न ही करने दिया जो वह करना चाहता था अन्यथा तत्कालिन परिस्थीतियॉं और भी भयावह घटित होतीं।
इसके अलावा गांधी नस्लवादी विचारधारा का भी आदमी था जिसने अफ्रीका में रहते हुए कई नस्लवादी बातें भी लिखी थीं। एक बार उसने लिखा था कि श्वेत लोगों को उनकी खामियों के बावजूद, दक्षिण अफ्रीका में प्रमुख जाति होनी चाहिए। सत्तारूढ़ ब्रिटिशों के साथ उसके व्यवहार ने ही उन्हें आश्वस्त किया था कि यूरोपीय लोग अफ्रीका में काले लोगों की तुलना में अधिक सभ्य व सक्षम थे।
उसने ब्रिटिशों को अपने विश्वासों का सारांश देते हुए एक पत्र में यह भी लिखा था कि ‘भारतीय लोगों या जंगली अफ्रीकी मूल निवासियों की तुलना में वे बेहतर हैं’, साथ ही काले लोगों का जिक्र करते समय उसने अपमानजनक शब्द ‘काफिर’ का भी इस्तेमाल किया।
1944 में, उसने एक और पत्र लिखा था जिसमें लिखित था कि वह भारतीय लोगों के बीच रहने से परेशान था, उसने भारतीयों के साथ रहते हुये अपने भय के मिश्रण के बारे में बताया था।
उसके एक आलोचक ने लिखा था कि गांधी आर्य ब्रदरहुड में विश्वास करते थे। इसमें सभ्य पैमाने पर अफ्रीकियों से ऊपर के गोरे और भारतीय शामिल थे। साथ ही उसने यह भी बताया कि गॉंधी इस हद तक नस्लवादी था कि उसने अफ्रीकियों को इतिहास से बाहर कर दिया और गोरों के साथ जुड़े रहने और उनकी अधीनता के लिए सदैव उत्सुक रहता था। इसलिये अन्य जातियों के प्रति वो नस्लवादी विचार भी रखता था।
आप केवल यह मान लीजिये कि गांधी उस समय में एक विषिश्ट बुद्धिजीवी उपज था जो आगामी हर गतिविधी को अच्छी तरह से महसूस कर सकता था। जब गांधी इंग्लैंड में थे, तो अपना अधिकांश समय वहॉं के बुद्धिजीवियों और उच्च स्तरीय लोगों के साथ घूमने में बिताया, लेकिन जब वह दक्षिण अफ़्रीका में गया तो उसने पाया कि उसे उन्हीं रेलगाड़ियों में यात्रा करनी पड़ रही है और उन लोगों की कतारों में शामिल होना पड़ रहा है जिन्हें गोरे कुली कहते थे, और गॉंधी को इससे नफरत थी। यह बात 1966 में स्पष्ट हुई जब एक विद्रोह ज़ुलूस के दौरान गांधी ने अंग्रेजों का समर्थन किया, जिसे उसने ‘काफिरों का विद्रोह’ कहा था। उसका मानना था कि ब्रिटिश शासन भले ही बर्बर थे किंतु वे योग्य व कुषल थे।
हमने इस बिंदु को केवल इसलिए थोड़ा सा समझा क्योंकि आपको यह स्वीकार करना होगा कि यह बहुत बड़ी बात है जब भेदभाव को समाप्त करने के लिए लड़ने वाला एक मानवाधिकार वकील भेदभाव और मानवाधिकारों के हनन के साथ हो चले।
गांधी ने एक बार अपने बेटे को पत्र लिखा था कि जो व्यक्ति अपनी शारीरिक इच्छा को पूरा करने के लिए शादी करता है वह मृत्यु से भी नीचे है।
उसने 13 साल की उम्र में शादी कर ली थी लेकिन 38 साल की उम्र में तथाकथित ब्रह्मचारी बन गया जिसने सामाजिक तौर पर सेक्स से मुंह मोड़ लिया हो, लेकिन इस दिखावटी आडंबरों के साथ ही वो पाखंड में डूबा रहता था। वह अपनी पोतियों और अन्य युवतियों के साथ बिस्तर पर अकेले ही सोना पसंद करता था और
गार्जियन अखबार ने यह लिखा कि गॉंधी को युवतियों, अविवाहित महिलाओं के साथ घिनौने, चालाकी भरे इश्कबाज़ी करने की आदत थी? उसने कहा कि मेरा जीवन मेरा संदेश है और उसने जो चुना वह ब्रह्मचर्य प्रयोग करने की आड़ में अपनी पोतियों और कई अन्य किशोरियों का यौन शोषण करने में आनंदित होने वाला रसिक मिजाज आदमी था। गांधी पर यौनवादी, नस्लवादी होने और युवा महिलाओं के साथ कुकृत्य करने का भी आरोप है। अन्य आध्यात्मिक नेताओं की तरह, जिन्होंने अपने कदमों से पृथ्वी को कलंकित किया है, उसे चालाक लोमड़ी जैसा शिकारी कहा गया है।
जिसके बारे में साधारणतया केवल यह माना जाता है कि गॉधी एक अहिंसावादी, षांती दूत और पवित्र आत्मा है, लेकिन ऐसे ष्वेतपोश व्यक्ति पर आरोप लगाना या सबूत के साथ साबित कर पाना अत्यंत ही कठिन हो जाता है।
खैर, वह जन्म नियंत्रण के खिलाफ़ था, और एक बार कहा था कि अगर लोग बहुत अधिक सेक्स करते हैं, तो वे नरम दिमाग वाले, असंयमी वास्तव में मानसिक और नैतिक रूप से बर्बाद हो जाएंगे। 1930 के दशक में उसने अपनी युवा पोती को अपने साथ बिस्तर पर आने के लिए कहा। उसने उससे कहा कि यह एक प्रयोग है कि क्या वह अपने पशु जुनून को नियंत्रित कर सकता है या नहीं। उसे इसकी परवाह नहीं थी कि लोग इस बारे में क्या सोचते हैं, क्योंकि उसे यौन इच्छा पर परीक्षण जारी रखना था, एक लेखक ने कहा, जब एक करीबी शिष्य ने गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बारे में सुना, तो उसने आश्रम छोड़ने की धमकी दी थी। उनकी पसंद स्पष्ट रूप से कभी भी स्वीकार्य नहीं थी। इन प्रयोगों में न केवल उनकी पोती, बल्कि आश्रम की अन्य युवतियाँ और लड़कियाँ भी शामिल थीं। इसका कोई प्रमाण नहीं कि इसने कभी उनके साथ संभोग किया, लेकिन मान लीजिए कि उसने वास्तव में खुद का परीक्षण किया। जहां तक यह सवाल है कि उसकी पत्नी को इस सब के बारे में कैसा महसूस हुआ, तो गांडी ने कभी भी उसे ज्यादा महत्व नहीं दिखाया।
कई लोगों के लिए गांधी एक नस्लवादी था जो यौन केंद्रित व्यवहार करता था।
आज हमने इस लेख में उस गॉंधी के दो रूपों का अध्ययन किया और अब आपको तय करना है कि उस गॉंधी को आप किस रूप में स्वीकार कर रहे हैं जिसके जीवन के वो फूहड़ और गहरे हिस्से ज्यादातर सामने नहीं आ सके।
Courtesy of {The infographics show} (YT) X~X~X
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